Friday, April 18, 2014

A Poem for the Rajasthani Women who walk endlessly for water... Jal

जल


श्वानों के शौक हैं तैराकी
मस्ती जल के सैलाबों में,
यहाँ थकती है माँ कि छाती,
बढती है वो निरंतर बिना बैठे और सुस्ताती |
लिये गगरी वो निकल पड़ी
खाली पैर बालू के चादर पे,
हे नभ इन्हें क्षमा कर दे
माँ कि ममता को तो आदर दे !

बातें होतीं बड़ी बड़ी
यहाँ बूंदों को लोग तरसते हैं,
यहाँ अश्रु पड़ते हैं पिने,
वहाँ फुहारों में वो हँसते हैं |

तपती गर्मी सूरज कि
और क़दमों के निचे रेगिस्तान,
देखो खोल के ऑंखें सब
कैसे तपता है हिंदुस्तान
एक गागर पानी पाने को,
और वहाँ पे लाखों जलमीनार हैं
एक अदा पे लुट जाने को !



राजस्थान के मरुभूमि में रहने वाली उन लाखों महिलाओं को समर्पित जो शायद ही समझ पायीं होंगी कि इतने साल गुजर गए सता अंग्रेजों के हाथ से हमारे नेताओं के हाथ में आये हुए | आज हमारे यहाँ बहुत से लोग हैं जो दावे तो बहुत बड़े बड़े करते हैं पर उनमे इतना पुरुषार्थ शायद ही है जो इनकी किस्मत को बादल सके | अपील है लोगों से कि आगे आयें और कुछ सोचें, फिर जल्दी से करें, कहीं ऐसा ना हो कि जैसे 70 साल गुजर गए वैसे ही और गुजर जाएँ !


Thursday, 17 April 2014


Please come ahead and lend a hand to them who need it. Do not only wave and clap for them who are simply after money! Wake up; those too are human!